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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

सौतेला : भाग 3 


कॉमर्स कॉलेज में संपत अकेला नहीं आया था । उसका लंगोटिया यार रामदास उसे अकेला कब छोड़ने वाला था । रामदास को उसका मां से झगड़ा करना अच्छा नहीं लगा था । उसने संपत को समझाने की बहुत कोशिश भी की थी  मगर संपत मानने को तैयार नहीं था । एक बार जब शक का कीड़ा दिमाग में घुस जाये तो फिर रिश्तों में दरार आ ही जाती है । शक का कीड़ा जबरन घुसाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं । वे तो मौके की तलाश में ही रहते हैं और मौके तो थोक के भाव मिलते हैं यहां । 
नई मां संपत को दौलत से भी अधिक प्यार करती थी । अनीता और सुमन में उसने कभी भेद नहीं किया । सौतेली मां की परिभाषा ही बदल दी थी उसने । मगर रिश्तेदार और पड़ौसी चैन से रहने दें तभी ना ? मौहल्ले की औरतें कभी कोई मौका नहीं छोड़ती थीं संपत की बुराई करने का । फिर भी नई मां उन्हें भूलकर संपत को भरपूर प्यार देने की कोशिश करती थी । वह संपत को दौलत से ज्यादा चाहने का दिखावा भी करने लगी और उसकी इसी बात ने संपत को और अधिक विद्रोही बना दिया । वह इस रिश्ते को जितना मजबूत करने की कोशिश करती , वह उतना ही कमजोर हो रहा था । नई मां खुद को असहाय महसूस कर रही थी । इस परिस्थिति के लिए वह स्वयं को उत्तरदायी समझती थी । संपत के पिता को सारी गलती संपत की लगती थी । 

संपत को अहसास हो गया था कि उसका इस घर में ज्यादा दिनों तक निबाह नहीं हो सकता था । मगर वह इस स्टेज पर कर भी क्या सकता था ? वह केवल पढ़ाई ही कर सकता था और कुछ नहीं । उसने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर ही केन्द्रित कर दिया । इधर उधर की बातों में उलझने के बजाय वह अपने मिशन पर डटा रहा । इसका परिणाम यह हुआ कि वह कक्षा में प्रथम आ गया । यह उपलब्धि कम नहीं थी उसकी । गांव की मिट्टी से निकला एक साधारण सा लड़का शहरी लड़कों को पछाड़कर नंबर एक बन गया था । संपत की इस उपलब्धि ने एक बार घर में उसके प्रति माहौल बदलने में बहुत भूमिका निभाई । संपत के पिता को अहसास हुआ कि संपत का दिमाग तेज है । उसे जैसे ही माहौल मिला , वैसे ही उसने अपना झंडा गाढ दिया था । संपत के प्रति जो भी छोटी मोटी नाराजगी उनके मन में हो गई थी, वह इस उपलब्धि से दूर हो गई थी । 

संपत अब नौकरी के बारे में सोचने लगा । वह चाहता था कि बी. कॉम . करते ही उसे नौकरी मिल जाए जिससे वह अपने पिता पर आश्रित ना रहे । इसलिए उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी प्रारंभ कर दी थी । इससे उसका ध्यान भंग हुआ और इस कारण द्वितीय वर्ष में उसके नंबर अपेक्षाकृत कम आए । उसके पिता ने कम नंबर आने का कारण भी पूछा था मगर संपत खामोश रह गया । रहे सहे संबंध खराब नहीं हो जाएं इसलिए पिताजी ने भी बात आगे नहीं बढाई । नई मां तो अब संपत को कुछ कहती ही नहीं थी । 

रामदास को भी बड़ा आघात लगा था जब संपत के नंबर अपेक्षाकृत कम आये थे , मगर वह हकीकत जानता था ।  इसलिए उसने संपत का हर जगह बचाव किया । परिवार में संपत के रिश्तों में तल्खी आने लगी थी । संपत को लगा कि वह सही है और बाकी सब लोग गलत हैं । खुद को सही और बाकी सबको गलत समझने की प्रवृत्ति बड़ी खतरनाक सिद्ध होती है । महारानी कैकेयी भी खुद को सही समझती थी मगर उसके कृत्यों के क्या परिणाम निकले ? दुर्योधन भी खुद को सही समझता था मगर सारी दुनिया जानती है कि वह गलत था । श्रीकृष्ण भगवान ने तो उसे समझाने के बहुत प्रयास भी किये थे मगर जिसकी आंखों पर लोभ लालच, मोह का पर्दा पड़ा हो तो फिर उसे कौन समझा सकता है ? 

तृतीय वर्ष में उसने प्रतियोगी परीक्षाओं पर पूरा फोकस कर दिया । पुलिस सब इंस्पेक्टर की परीक्षा पूरी तैयारी और लगन के साथ दी थी उसने । बी. कॉम. फाइनल का परीक्षा परिणाम आता उससे पहले ही पुलिस सब इंस्पेक्टर परीक्षा का परिणाम आ गया था । संपत का उसमें चयन हो गया था । पूरे परिवार में दीपावली सी रौनक हो गई थी । पहले प्रयास में ही "थानेदार" बन गया था संपत । इससे बड़ी और क्या उपलब्धि चाहिए ? मन मांगी मुराद मिल गई थी उसे । इस एक उपलब्धि से संपत का कद बहुत बढ गया था गांव में । सब लोग मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे थे संपत की । रामदास की तो जैसे तपस्या पूरी हो गईथी । उसके दोस्त को उसका मुकाम मिल गया, इससे बढिया बात और क्या हो सकती थी रामदास के लिए । उसे तो वकील बनना था इसलिए उसने एल एल बी में प्रवेश ले लिया और संपत पुलिस सब इंस्पेक्टर की ट्रेनिंग के लिए चला गया । 

पहली बार दोनों दोस्त अलग अलग हुए थे । बड़ा बुरा लगा था दोनों को जब वे बिछुड़ रहे थे । मगर यह तो होना ही था । किस्मत के खेल बड़े निराले होते हैं । नियति के आगे सब बेबस हैं । दोनों के रास्ते अब अलग अलग हो गये थे । खतों के माध्यम से दोस्ती का सिलसिला बरकरार रहा । जब कभी होली दीवाली पर मिलना होता , दोनों दोस्त दो जिस्म एक जान हो जाते थे । 

अब संपत के विवाह की बात चलने लगी थी । संपत की कोई विशेष ख्वाहिश नहीं थी । वह तो एक ऐसी लड़की चाहता था जो उसके हृदय में प्यार की कमी को पूरा कर दे । दिल के सूनेपन को अपने प्रेम से सिंचित कर दे । कभी कभी भगवान भी दिल की पुकार सुन लेते हैं । संपत के लिये गायत्री का रिश्ता आया । गायत्री न केवल एक सुन्दर कन्या थी अपितु बहुत सरल , व्यावहारिक और बहुत मिलनसार भी थी । पहली नजर में ही गायत्री सबको पसंद आ गयी और इस तरह संपत की जिंदगी बहारों की तरह मुस्कुरा गई । गायत्री को पाकर संपत निहाल हो गया था । उसे अपने मुकद्दर पर विश्वास नहीं हो रहा था । पहले तो थानेदार की नौकरी फिर गायत्री जैसी छोकरी । लोग सही कहते हैं कि ऊपर वाला जब देता है तो वह छप्पर फाड़कर देता है । संपत इसका साक्षात उदाहरण था । 

क्रमशः 
श्री हरि 
11.9.22 


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11 Comments

Simran Bhagat

23-Sep-2022 08:01 PM

👍🏻👍🏻👍🏻

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Mithi . S

23-Sep-2022 04:38 PM

Behtarin rachana

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Pallavi

13-Sep-2022 06:27 PM

Beautiful

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